विश्वास, भक्ति, आनंद एक दिव्य यात्रा | Vishwas, Bhakti, Aanand Ek Divya Yatra
जीवन का उद्देश्य तलाशता हुआ मनुष्य अंतरिक्ष से पृथ्वी को देखने वालों ने इसे नीला ग्रह कहकर संबोधित किया । इस ग्रह पर फैले विशालकाय महासागर, घने जंगल, बादलों को छूने वाली पर्वत श्रृंखलाएं, बस देखते बनती हैं । प्रकृति के इन्हीं खूबसूरत नजारों के बीच रहते हैं 'परमेश्वर की सर्वश्रेष्ठ कलाकृति कहलाए जाने वाले, "मानव" । आदिमानव के रूप में वनों में दौड़ -भाग कर शिकार करने से लेकर, आज प्रगति की बुलंदियों तक पहुंचने वाले मनुष्यों ने कितने कमाल का सफर तय किया है । इन उपलब्धियों के लिए आज समस्त मानव जाति बधाई की पात्र है । परंतु भोजन के लिए जंगलों में लगाई हुई दौड़ से लेकर आज सुख - सुविधाओं के लिए दिन रात दौड़ने वाला मानव उन्हीं भौतिक (दुनियावी) वस्तुओं में उलझकर रह गया, और उन्हीं में अपना सुकून ढूंढने लगा । ये सारी वस्तुएं कुछ क्षण का सुख तो जरूर दे सकतीं हैं पर एक सीमा के बाद नीरस हो जाती हैं । और फिर सारी भाग दौड़ जैसे व्यर्थ प्रतीत होने लगती है। जैसे संत कबीर कहते हैं वस्तु कहीं, ढूंढे कहीं,.... केहि विधि आवे हाथ.. ! कहे कबीर वस्तु तब पाईये.. भेद...