बंधन मुक्त जीवन का रहस्य | Bandhan Mukt Jivan Ka Rahasya
ज्ञानी जन जब ये कहते हैं की यह संसार नश्वर है और हर वस्तु का एक दिन अंत हो जाएगा तो उनका अर्थ यह नहीं होता की सब कुछ छोड़ कर बैठ जाना है, इसके विपरीत विवेकी पुरुष इसमें भाग भी लेता है | भौतिक वस्तुओं से मिल रहे उन सुखों का उपभोग भी करता है और साथ - साथ निर्लेप भी रहता है |
क्यूंकी जिसने सत्य को जान लिया वो किसी सोये हुए मनुष्य की भांति नहीं जीता | ज्ञानी सदैव जागा हुआ होता है और जागने का अर्थ सिर्फ बाह्य इंद्रियों से जागना नहीं होता |
सर्वकर्माणि मनसा संन्यस्यास्ते सुखं वशी।
नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन् ।।5.13।।
नवद्वारे पुरे देही नैव कुर्वन्न कारयन् ।।5.13।।
ज्ञानी जिसकी इन्द्रियाँ और मन वश में हैं, ऐस पुरुष नौ द्वारों वाले नगर (भौतिक शरीर) में बिना कुछ किये अथवा विवेकपूर्व कार्य करते हुए सुखपूर्वक रहता है |
विवेकी सज्जन कभी पलायन नहीं करता वो पलायन करने को संन्यास नहीं मानता |
वो ऐसा कौन सा रहस्य है, जिसके बाद ऐसा करना संभव हो सकता है | जहां इस शरीर रूपी नगर मे रहकर भी इसमे लिप्त होना जरूरी नहीं ? कर्म की ऐसी व्याख्या केवल ईश्वर कृपा से प्राप्त होती है अथवा कोई मार्गदर्शक ही जीवन मे आकार इसका बोध करा सकता है |
आइये जानते हैं उस रहस्य को |
यथा सर्वगतं सौक्ष्म्यादाकाशं नोपलिप्यते।
सर्वत्रावस्थितो देहे तथाऽऽत्मा नोपलिप्यते ।1 33 ।।
आकाश सर्वव्यापी है लेकिन अपनी सूक्ष्म प्रकृति के कारण किसी वस्तु से लिप्त नहीं होता | ऐसे ही सब जगह परिपूर्ण आत्मा किसी भी देह में लिप्त नहीं होता |
जैसे हवा हर चीज़ का संग या साथ करके भी उसमे लिप्त नहीं होती | जैसे वायु चन्दन के पेड़ से भी लगकर गुजरती है, कीचड़ मे भी प्रवेश करती है | पानी हो या कोई अन्य वस्तु ही क्यूँ ना हो, ठीक ऐसे ही ये आत्मा अलग - अलग शरीरों में स्थित होकर भी उनसे अलग बनी रहती है उसे इन आँखों से देख पाना संभव नहीं है |
जब प्रभु कृपा से इंसान को ब्रम्ह्ज्ञान होता है | उस क्षण ऐसी घटना घटती है जो उसके साथ कभी नहीं हुई होती | उस दिव्यता का अनुभव केवल वही कर सकता है जिसके साथ ये घटना घटी अर्थात जो अब तक केवल एक बूंद था वो अपने को सागर समान देखने लगता है | इस धारण किए हुए शरीर का ध्यान जरूर रखता है परंतु उसका मोह या अभिमान नहीं करता | इस शरीर से जुड़े तमाम आसक्ति वाले भावों को देख कर मुस्कुराता है उन्हें निहारता है जैसे कोई समझदार व्यक्ति मिट्टी में खेल रहे बालक को देखता है और आनंद लेता है |
ना तो वो बालक उस व्यक्ति को परेशान करता है | ना ही वो व्यक्ति उस बालक की भांति मिट्टी मे लेटता है |
मेरा मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर..
ReplyDeleteप्रणाम
Deleteज्ञानी संसार में रहते हुए भी संसार से निर्लेप भाव से रहता है।
ReplyDeleteयथार्थ
DeleteNice feeling... after reading this article.
ReplyDeleteDhanyavaad 🙏
DeleteBahut khub
ReplyDeleteShukriya
DeleteTu hi Tu 😇
ReplyDeleteJi 🙏
Delete🙏👏
ReplyDelete🙏🙂
DeleteWaa avinash ji.
ReplyDeleteShukriya Sameer ji
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